Monday, September 1, 2025

भगवान: एक खोज

By:   Last Updated:


अध्याय 17: भ्रम और सच्चाई


इतिहास हमें बताता है कि हर युग में भगवान के नाम पर लोगों को परिभाषाएँ दी गईं।

कभी कहा गया कि भगवान मंदिर में रहते हैं,

कभी कहा गया कि वे किसी एक धर्म या किताब में बंद हैं,

कभी कहा गया कि वे केवल खास साधु-संतों के द्वारा ही मिल सकते हैं।


लेकिन सच्चाई किसी ने स्पष्ट नहीं बताई।

भगवान का नाम हमेशा डर और विश्वास का साधन बना।

लोगों को डराया गया –

“अगर पाप करोगे तो नरक मिलेगा, अगर पुण्य करोगे तो स्वर्ग।”


इस डर का फायदा उठाकर अनेक लोग अमीर होते गए।

कभी दान के नाम पर, कभी बलि के नाम पर, कभी आडंबरों के नाम पर –

भगवान को व्यापार का हिस्सा बना दिया गया।


असल में इंसान को भगवान की तलाश से ज्यादा भगवान के नाम पर नियंत्रण चाहिए था।



---


अध्याय 18: ओशो की दृष्टि


जब ओशो के विचारों को ध्यान से सुना, तो एक नई रोशनी मिली।

ओशो ने कहा –

भगवान को बाहर ढूँढना व्यर्थ है।

अगर भगवान हैं तो वे हर कण में हैं।

फूल की खुशबू में, हवा की ताजगी में, सूरज की किरणों में,

और सबसे ज्यादा – इंसान के भीतर।


अगर शरीर खुद भगवान की रचना है, तो इसे कष्ट देकर भगवान को प्रसन्न करने की कोशिश करना कहाँ तक उचित है?

क्या व्रत करके, उपवास करके, शरीर को भूखा रखकर भगवान प्रसन्न होंगे?

क्या वे इतने निर्दयी हैं कि हमें अपनी ही देह को दुख देना पड़े?


यहाँ एक बड़ा विरोधाभास है –

शास्त्र कहते हैं भगवान हर जगह हैं,

तो फिर क्या वे हमारे भीतर नहीं?

अगर भीतर हैं तो अपने शरीर का अपमान करना स्वयं भगवान का अपमान है।



---


अध्याय 19: विज्ञान और अंधविश्वास


आज का समय देखिए।

एक तरफ़ विज्ञान ने चमत्कार किए हैं।


इंसान ने अंतरिक्ष में कदम रख लिया है।


कंप्यूटर और इंटरनेट ने पूरी दुनिया को जोड़ दिया है।


रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इंसान की सोच से भी तेज़ काम कर रहे हैं।



लेकिन दूसरी तरफ़, भारत जैसे देश में धर्म के नाम पर अंधविश्वास बढ़ रहा है।


झूठे बाबा और ढोंगी संत करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर चुके हैं।


लोग धूप-अगरबत्ती जलाने, महंगे हवन करने, और दिखावे की पूजा में लाखों खर्च कर देते हैं।


और सबसे दुखद – भगवान के नाम पर बलि और हिंसा आज भी जारी है।



सोचिए, अगर भगवान सचमुच इतने महान हैं, तो क्या वे इन सब दिखावों से प्रसन्न होंगे?

क्या उन्हें धुएँ की गंध, सोने-चाँदी के गहनों, या मांस की बलि की ज़रूरत है?


अगर भगवान समझदार हैं, तो उन्हें इंसान से केवल उसके कर्म चाहिए – न कि उसका पाखंड।



---


अध्याय 20: असली पूजा


अब सवाल है – भगवान को प्रसन्न कैसे किया जा सकता है?


उत्तर बहुत सरल है –


भूखे को भोजन देना ही सबसे बड़ा प्रसाद है।


किसी गरीब की मदद करना ही सबसे बड़ा हवन है।


बेजुबान जानवरों से प्यार करना ही सबसे बड़ी पूजा है।


सत्य और करुणा से जीना ही सबसे बड़ा व्रत है।



आप खुद सोचिए –

क्या भगवान उन लोगों से ज्यादा प्रसन्न होंगे जो भूखे रहकर घंटों पूजा करते हैं,

या उन लोगों से जो किसी भूखे को खाना खिलाते हैं?


भगवान अगर हैं, तो उन्हें दिखावे की कोई ज़रूरत नहीं।

उन्हें आपकी नीयत और कर्म चाहिए।



---


अध्याय 21: अधूरे सवाल


फिर भी मन में एक सवाल हमेशा उठता है –

भगवान के नाम पर बलि देना, झूठे चमत्कार दिखाना, और औरतों का अपमान करना –

ये सब कहाँ तक उचित है?


इतिहास गवाह है कि भगवान के नाम पर सबसे ज्यादा खून बहाया गया।

मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे – सब इंसानियत को जोड़ने की जगह कई बार इंसानियत को तोड़ने के साधन बने।


अगर भगवान सचमुच न्यायप्रिय होते, तो क्या वे यह सब होने देते?

या फिर सच यह है कि भगवान का विचार इंसान ने खुद बनाया –

पहले संतुलन के लिए, और बाद में नियंत्रण के लिए।



---


निष्कर्ष (इस भाग का)


इतना तो स्पष्ट है कि भगवान की खोज मूर्तियों और अनुष्ठानों में नहीं,

बल्कि इंसानियत और सत्य में है।


अगर भगवान हैं तो वे आपके भीतर हैं –

आपके अच्छे कर्मों में, आपकी करुणा में, आपके प्रेम में।


अगर भगवान नहीं भी हैं, तो भी यह रास्ता गलत नहीं।

क्योंकि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है।



---


👉 अगले भाग में विस्तार से यह चर्चा होगी कि भगवान की वास्तविक संभावनाएँ क्या हैं –


क्या वे कठोर नियंता हैं?


क्या वे अदृश्य ऊर्जा हैं?


या केवल मानव-निर्मित कल्पना हैं?




---


क्या आप चाहेंगे कि मैं अगले हिस्से में इन तीनों संभावनाओं (नियंता, ऊर्जा, कल्पना) पर बहुत गहराई से दार्शनिक तर्क-वितर्क करूँ?


No comments:
Write comment